महिला आरक्षण विधेयक 2023

Admin
0

 

प्रिलिम्स के लिये:

संसद और राज्य विधानसभाएँ, दिल्ली को विशेष दर्जा, आरक्षण प्रावधान और सकारात्मक नीतियाँ

मेन्स के लिये:

लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये आरक्षण प्रावधानों के बीच अंतर्संबंध, अन्य राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा के बीच अंतर


चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने महिला आरक्षण विधेयक 2023 (128वाँ संवैधानिक संशोधन विधेयक) अथवा नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित कर दिया।

  • यह विधेयक लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है। यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।

विधेयक की पृष्ठभूमि और आवश्यकता:

  • पृष्ठभूमि:
    • महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा वर्ष 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के कार्यकाल से ही की जाती रही है।
      • चूँकि तत्कालीन सरकार के पास बहुमत नहीं था, इसलिये विधेयक को मंज़ूरी नहीं मिल सकी।
    • महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु किये गए प्रयास:
      • 1996: पहला महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश किया गया।
      • 1998 - 2003: सरकार ने 4 अवसरों पर विधेयक पेश किया लेकिन पारित कराने में असफल रही।
      • 2009: विभिन्न विरोधों के बीच सरकार ने विधेयक पेश किया।
      • 2010: केंद्रीय मंत्रिमंडल और राज्यसभा द्वारा पारित।
      • 2014: विधेयक को लोकसभा में पेश किये जाने की उम्मीद थी।
  • आवश्यकता:
    • लोकसभा में 82 महिला सांसद (15.2%) और राज्यसभा में 31 महिलाएँ (13%) हैं।
      • जबकि पहली लोकसभा (5%) के बाद से यह संख्या काफी बढ़ी है लेकिन कई देशों की तुलना में अभी भी काफी कम है।
    • हाल के संयुक्त राष्ट्र महिला आँकड़ों के अनुसार, रवांडा (61%), क्यूबा (53%), निकारागुआ (52%) महिला प्रतिनिधित्व में शीर्ष तीन देश हैं। महिला प्रतिनिधित्व के मामले में बांग्लादेश (21%) और पाकिस्तान (20%) भी भारत से आगे हैं।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • निचले सदन में महिलाओं को आरक्षण:
  • विधेयक में संविधान में अनुच्छेद 330A शामिल करने का प्रावधान किया गया है, जो अनुच्छेद 330 के प्रावधानों से लिया गया है। यह लोकसभा में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • विधेयक में प्रावधान किया गया कि महिलाओं के लिये आरक्षित सीटें राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन द्वारा आवंटित की जा सकती हैं।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों में, विधेयक में रोटेशन के आधार पर महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने की मांग की गई है।
  • राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये आरक्षण:
    • विधेयक अनुच्छेद 332A प्रस्तुत करता है, जो हर राज्य विधानसभा में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण को अनिवार्य करता है। इसके अतिरिक्त SC और ST के लिये आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई महिलाओं के लिये आवंटित की जानी चाहिये तथा विधान सभाओं के लिये सीधे मतदान के माध्यम से भरी गई कुल सीटों में से एक-तिहाई भी महिलाओं के लिये आरक्षित होनी चाहिये।
  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में महिलाओं के लिये आरक्षण (239AA में नया खंड):
  • संविधान का अनुच्छेद 239AA केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को उसके प्रशासनिक और विधायी कार्य के संबंध में राष्ट्रीय राजधानी के रूप में विशेष दर्जा देता है।
  • विधेयक द्वारा अनुच्छेद 239AA(2)(b) में तद्नुसार संशोधन किया गया और इसमें यह जोड़ा गया कि संसद द्वारा बनाए गए कानून दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर लागू होंगे।
  • आरक्षण की शुरुआत (नया अनुच्छेद - 334A):
  • इस विधेयक के लागू होने के बाद होने वाली जनगणना के प्रकाशन में आरक्षण प्रभावी होगा। जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने हेतु परिसीमन किया जाएगा।
  • आरक्षण 15 वर्ष की अवधि के लिये प्रदान किया जाएगा। हालाँकि यह संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित तिथि तक जारी रहेगा।
  • सीटों का रोटेशन:
  • महिलाओं के लिये आरक्षित सीटें प्रत्येक परिसीमन के बाद रोटेट की जाएंगी, जैसा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

विधेयक के विरोध में तर्क:

  • विधेयक में केवल इतना कहा गया है कि यह "इस उद्देश्य के लिये परिसीमन की कवायद शुरू होने के बाद पहली जनगणना के लिये प्रासंगिक आँकड़े प्राप्त करने के बाद लागू होगा।" यह चुनाव के चक्र को निर्दिष्ट नहीं करता है जिससे महिलाओं को उनका उचित हिस्सा मिलेगा।
  • वर्तमान विधेयक राज्यसभा और राज्य विधानपरिषदों में महिला आरक्षण प्रदान नहीं करता है। राज्यसभा में वर्तमान में लोकसभा की तुलना में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। प्रतिनिधित्व एक आदर्श है जो निचले और ऊपरी दोनों सदनों में प्रतिबिंबित होना चाहिये।

नोट: विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 334 के प्रावधानों से भी लिया गया है, जो संसद को कानूनों के अस्तित्व में आने के 70 वर्षों के बाद आरक्षण के प्रावधानों की समीक्षा करने के लिये बाध्य करता है। लेकिन महिला आरक्षण विधेयक के मामले में, विधेयक में महिलाओं के लिये आरक्षण प्रावधानों की संसद द्वारा समीक्षा किये जाने के लिये 15 वर्ष के सनसेट क्लॉज़ का प्रावधान किया गया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)
Our website uses cookies to enhance your experience. Check Out
Ok, Go it!