केंद्र सरकार ने 29 जुलाई को देशभर के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में एडमिशन के लिए ऑल इंडिया
कोटा में OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) और EWS (आर्थिक तौर पर कमजोर तबके) के लिए रिजर्वेशन को मंजूरी दे दी है। नए नियम के
तहत OBC कैंडिडेट्स को 27% और EWS कैंडिडेट्स को 10% रिजर्वेशन मिलेगा। सरकार का दावा है कि MBBS सीटों पर 1,500 OBC और 550 EWS कैंडिडेट्स को इसका लाभ मिलेगा।
आइए, जानते हैं कि केंद्र सरकार के फैसले के NEET की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स पर क्या असर होगा? अब तक मेडिकल सीटों पर रिजर्वेशन पॉलिसी क्या थी और अब क्या बदलाव
आएगा? केंद्र सरकार का यह फैसला NEET के नोटिफिकेशन के बाद क्यों आया है?
नीट या NEET क्या है?
-
नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एंट्रेंस टेस्ट (NEET)
देशभर के मेडिकल कॉलेजों के लिए सिंगल एंट्रेंस एग्जाम है। इसमें सफल
छात्रों को देशभर में अंडरग्रेजुएट (NEET-UG) और पोस्टग्रेजुएट (NEET-PG)
मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में एडमिशन मिलता है।
-
NEET
लागू होने का इतिहास भी कम घुमावदार नहीं है। 2016
तक पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ऑल
इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (AIPMT)
होता था। राज्यों में अलग से प्री-मेडिकल टेस्ट (PMT)
होता था।
-
NEET पहली बार 2003
में हुई थी,
पर उसके अगले साल राज्यों के विरोध की वजह से बंद करनी पड़ी। सुप्रीम
कोर्ट ने 13 अप्रैल 2016
को इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट में नए सेक्शन 10-D
को मंजूरी दी। इससे देशभर के मेडिकल कॉलेजों में अंडरग्रेजुएट और
पोस्टग्रेजुएट कोर्सेस के लिए सिंगल एंट्रेंस एग्जाम का रास्ता खुला।
-
तब से देशभर में मेडिकल कोर्सेस में एडमिशन के लिए स्टूडेंट्स को NEET देना पड़ रहा है। शुरुआत में CBSE (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल) ने यह परीक्षा कराई। पर नेशनल टेस्टिंग
एजेंसी (NTA) बनने के बाद 2018
में उसे यह जिम्मेदारी दी गई। 2020
में 15.97
लाख स्टूडेंट्स ने 13
सितंबर 2020 को NEET
में भाग लिया था। इस साल 11
सितंबर को अंडरग्रेजुएट और 12
सितंबर को पोस्टग्रेजुएट कोर्सेस के लिए एंट्रेंस एग्जाम हो रही है।
मेडिकल कॉलेजों के लिए ऑल इंडिया कोटा क्या है?
-
राज्यों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए दो तरह के नियम हैं- 1. ऑल इंडिया कोटा और, 2.
स्टेट कोटा। स्टेट कोटे में राज्य के मूल निवासी स्टूडेंट्स को एडमिशन
मिलता था। वहीं,
ऑल इंडिया कोटे में नेशनल लेवल पर मेरिट लिस्ट के आधार पर अन्य राज्यों के
स्टूडेंट्स को भी एडमिशन मिलता है। राज्यों के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में 15% अंडरग्रेजुएट सीटें और 50%
पोस्टग्रेजुएट सीटें ऑल इंडिया कोटे में रहती है। बाकी बची सीटें स्टेट
कोटे में आती है।
-
ऑल इंडिया कोटा भी सुप्रीम कोर्ट के 1986
के फैसले से लागू हुआ था। ताकि अगर कोई स्टूडेंट अपने मूल राज्य से बाहर
के अच्छे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेना चाहता है तो उसे ऐसा करने की इजाजत
मिल सके।
-
उदाहरण के लिए अगर राजस्थान का मूल निवासी महाराष्ट्र के सरकारी मेडिकल
कॉलेज में एडमिशन चाहता है तो वह ऑल इंडिया कोटे की मेरिट लिस्ट में जगह
बनाकर ऐसा कर सकता है। अगर ऑल इंडिया कोटे में जगह नहीं बना सका तो
स्टूडेंट के पास अपने राज्य के मेडिकल या डेंटल कॉलेज में एडमिशन की उम्मीद
कायम रहती है।
-
डीम्ड/सेंट्रल यूनिवर्सिटियों, ESIC
और आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज (AFMC)
में 100%
सीटें ऑल इंडिया कोटे में रहती हैं। यानी ऑल इंडिया कोटे का अलग से
प्रावधान सिर्फ राज्यों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रहता है।
यह रिजर्वेशन पॉलिसी किस तरह लागू होती है?
-
2007
तक मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए ऑल इंडिया कोटे में कोई रिजर्वेशन
नहीं होता था। पर 31 जनवरी 2007
को अभय नाथ बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी एवं अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट
ने ऑल इंडिया कोटे में अनुसूचित जाति को 15% और अनुसूचित जनजाति को 7.5%
रिजर्वेशन देने का आदेश दिया था।
-
इसके बाद सरकार ने सेंट्रल एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस (रिजर्वेशन इन एडमिशन)
एक्ट 2007
लागू किया। इससे केंद्र सरकार के मेडिकल कॉलेजों- यानी एम्स जैसे
संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) स्टूडेंट्स को 27%
रिजर्वेशन मिलने लगा। राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में ऑल इंडिया कोटे के
बाहर OBC कोटा रहेगा। यानी ऑल इंडिया कोटे में OBC
के लिए रिजर्वेशन नहीं दिया जा रहा था।
-
2019 में सरकार ने संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम 2019
पारित किया। इसमें आर्थिक तौर पर कमजोर तबके (EWS)
के लिए 10%
कोटा जोड़ा गया। इसे केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में लागू किया गया पर
राज्यों के संस्थानों में NEET के ऑल इंडिया कोटे में उसे शामिल नहीं किया गया।
NEET में ऑल इंडिया कोटे में OBC और EWS को भी मिलेगा रिजर्वेशन; जानिए यह फैसला क्या कहता है और किसे कितना फायदा होगा?
केंद्र सरकार ने 29 जुलाई को देशभर के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में एडमिशन के लिए ऑल इंडिया
कोटा में OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) और EWS (आर्थिक तौर पर कमजोर तबके) के लिए रिजर्वेशन को मंजूरी दे दी है। नए नियम के
तहत OBC कैंडिडेट्स को 27% और EWS कैंडिडेट्स को 10% रिजर्वेशन मिलेगा। सरकार का दावा है कि MBBS सीटों पर 1,500 OBC और 550 EWS कैंडिडेट्स को इसका लाभ मिलेगा।
आइए, जानते हैं कि केंद्र सरकार के फैसले के NEET की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स पर क्या असर होगा? अब तक मेडिकल सीटों पर रिजर्वेशन पॉलिसी क्या थी और अब क्या बदलाव
आएगा? केंद्र सरकार का यह फैसला NEET के नोटिफिकेशन के बाद क्यों आया है?
नीट या NEET क्या है?
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नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एंट्रेंस टेस्ट (NEET)
देशभर के मेडिकल कॉलेजों के लिए सिंगल एंट्रेंस एग्जाम है। इसमें सफल
छात्रों को देशभर में अंडरग्रेजुएट (NEET-UG) और पोस्टग्रेजुएट (NEET-PG)
मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में एडमिशन मिलता है।
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NEET
लागू होने का इतिहास भी कम घुमावदार नहीं है। 2016
तक पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ऑल
इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (AIPMT)
होता था। राज्यों में अलग से प्री-मेडिकल टेस्ट (PMT)
होता था।
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NEET पहली बार 2003
में हुई थी,
पर उसके अगले साल राज्यों के विरोध की वजह से बंद करनी पड़ी। सुप्रीम
कोर्ट ने 13 अप्रैल 2016
को इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट में नए सेक्शन 10-D
को मंजूरी दी। इससे देशभर के मेडिकल कॉलेजों में अंडरग्रेजुएट और
पोस्टग्रेजुएट कोर्सेस के लिए सिंगल एंट्रेंस एग्जाम का रास्ता खुला।
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तब से देशभर में मेडिकल कोर्सेस में एडमिशन के लिए स्टूडेंट्स को NEET देना पड़ रहा है। शुरुआत में CBSE (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल) ने यह परीक्षा कराई। पर नेशनल टेस्टिंग
एजेंसी (NTA) बनने के बाद 2018
में उसे यह जिम्मेदारी दी गई। 2020
में 15.97
लाख स्टूडेंट्स ने 13
सितंबर 2020 को NEET
में भाग लिया था। इस साल 11
सितंबर को अंडरग्रेजुएट और 12
सितंबर को पोस्टग्रेजुएट कोर्सेस के लिए एंट्रेंस एग्जाम हो रही है।
मेडिकल कॉलेजों के लिए ऑल इंडिया कोटा क्या है?
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राज्यों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए दो तरह के नियम हैं- 1. ऑल इंडिया कोटा और, 2.
स्टेट कोटा। स्टेट कोटे में राज्य के मूल निवासी स्टूडेंट्स को एडमिशन
मिलता था। वहीं,
ऑल इंडिया कोटे में नेशनल लेवल पर मेरिट लिस्ट के आधार पर अन्य राज्यों के
स्टूडेंट्स को भी एडमिशन मिलता है। राज्यों के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में 15% अंडरग्रेजुएट सीटें और 50%
पोस्टग्रेजुएट सीटें ऑल इंडिया कोटे में रहती है। बाकी बची सीटें स्टेट
कोटे में आती है।
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ऑल इंडिया कोटा भी सुप्रीम कोर्ट के 1986
के फैसले से लागू हुआ था। ताकि अगर कोई स्टूडेंट अपने मूल राज्य से बाहर
के अच्छे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेना चाहता है तो उसे ऐसा करने की इजाजत
मिल सके।
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उदाहरण के लिए अगर राजस्थान का मूल निवासी महाराष्ट्र के सरकारी मेडिकल
कॉलेज में एडमिशन चाहता है तो वह ऑल इंडिया कोटे की मेरिट लिस्ट में जगह
बनाकर ऐसा कर सकता है। अगर ऑल इंडिया कोटे में जगह नहीं बना सका तो
स्टूडेंट के पास अपने राज्य के मेडिकल या डेंटल कॉलेज में एडमिशन की उम्मीद
कायम रहती है।
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डीम्ड/सेंट्रल यूनिवर्सिटियों, ESIC
और आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज (AFMC)
में 100%
सीटें ऑल इंडिया कोटे में रहती हैं। यानी ऑल इंडिया कोटे का अलग से
प्रावधान सिर्फ राज्यों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रहता है।
यह रिजर्वेशन पॉलिसी किस तरह लागू होती है?
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2007
तक मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए ऑल इंडिया कोटे में कोई रिजर्वेशन
नहीं होता था। पर 31 जनवरी 2007
को अभय नाथ बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी एवं अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट
ने ऑल इंडिया कोटे में अनुसूचित जाति को 15% और अनुसूचित जनजाति को 7.5%
रिजर्वेशन देने का आदेश दिया था।
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इसके बाद सरकार ने सेंट्रल एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस (रिजर्वेशन इन एडमिशन)
एक्ट 2007
लागू किया। इससे केंद्र सरकार के मेडिकल कॉलेजों- यानी एम्स जैसे
संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) स्टूडेंट्स को 27%
रिजर्वेशन मिलने लगा। राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में ऑल इंडिया कोटे के
बाहर OBC कोटा रहेगा। यानी ऑल इंडिया कोटे में OBC
के लिए रिजर्वेशन नहीं दिया जा रहा था।
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2019 में सरकार ने संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम 2019
पारित किया। इसमें आर्थिक तौर पर कमजोर तबके (EWS)
के लिए 10%
कोटा जोड़ा गया। इसे केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में लागू किया गया पर
राज्यों के संस्थानों में NEET के ऑल इंडिया कोटे में उसे शामिल नहीं किया गया।
सरकार के नए फैसले से किस तरह व्यवस्था बदलेगी?
-
सरकार ने 29
जुलाई को तय किया कि एकेडमिक ईयर 2021-22
से मेडिकल कॉलेजों के ऑल इंडिया कोटे में भी OBC
और EWS
के लिए कोटा रहेगा। हेल्थ मिनिस्ट्री का कहना है कि इस फैसले से OBC स्टूडेंट्स को 1,500 MBBS
और 2,500
पोस्टग्रेजुएट सीटों का लाभ मिलेगा। इसी तरह EWS
स्टूडेंट्स को 550 MBBS
और 1,000
पोस्टग्रेजुएट सीटें रिजर्व रहेंगी।
-
यह OBC और EWS
दोनों के लिए ही विन-विन सिचुएशन है। ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ OBC एम्प्लॉई'ज वेलफेयर रिपोर्ट कहती है कि 2017 से 2020
के बीच राज्य सरकारों के मेडिकल कॉलेजों में 40,800
सीटें ऑल इंडिया कोटे में गई। यह बताता है कि 10,900
OBC स्टूडेंट्स अपने कोटे से एडमिशन नहीं पा सके।
केंद्र सरकार ने यह फैसला क्यों लिया?
-
मद्रास हाईकोर्ट के फैसले की वजह से। NEET
को लेकर सबसे ज्यादा विरोध दक्षिण भारत से हो रहा था। तमिलनाडु की
सत्ताधारी द्रमुक (DMK)
और उसके सहयोगियों ने मद्रास हाईकोर्ट में ऑल इंडिया कोटे में OBC
को कोटा देने की मांग की थी। इस पर हाईकोर्ट ने 27
जुलाई 2020
को इसके पक्ष में फैसला सुनाया था। पर यह नियम 2021-22 से लागू होना था।
-
13 जुलाई 2021 को NEET-2021
नोटिफिकेशन जारी हुआ। इसमें ऑल इंडिया कोटे में OBC
रिजर्वेशन की बात नहीं थी। तब DMK
ने 19
जुलाई को अवमानना याचिका दाखिल की। इस पर मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि ऑल
इंडिया सीटों में OBC
रिजर्वेशन नहीं दिया जाना यह बताता है कि केंद्र सरकार हाईकोर्ट के फैसले
की अवमानना हो रही है।
-
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 26
जुलाई को मद्रास हाईकोर्ट में बताया कि राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में ऑल
इंडिया कोटे के तहत OBC
कोटा देने का फैसला जल्द ही हो जाएगा। इस मामले की अगली सुनवाई 3 अगस्त को है
केंद्र सरकार ने 29 जुलाई को देशभर के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में एडमिशन के लिए ऑल इंडिया
कोटा में OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) और EWS (आर्थिक तौर पर कमजोर तबके) के लिए रिजर्वेशन को मंजूरी दे दी है। नए नियम के
तहत OBC कैंडिडेट्स को 27% और EWS कैंडिडेट्स को 10% रिजर्वेशन मिलेगा। सरकार का दावा है कि MBBS सीटों पर 1,500 OBC और 550 EWS कैंडिडेट्स को इसका लाभ मिलेगा।
आइए, जानते हैं कि केंद्र सरकार के फैसले के NEET की तैयारी कर रहे स्टूडेंट्स पर क्या असर होगा? अब तक मेडिकल सीटों पर रिजर्वेशन पॉलिसी क्या थी और अब क्या बदलाव
आएगा? केंद्र सरकार का यह फैसला NEET के नोटिफिकेशन के बाद क्यों आया है?
नीट या NEET क्या है?
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नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एंट्रेंस टेस्ट (NEET)
देशभर के मेडिकल कॉलेजों के लिए सिंगल एंट्रेंस एग्जाम है। इसमें सफल
छात्रों को देशभर में अंडरग्रेजुएट (NEET-UG) और पोस्टग्रेजुएट (NEET-PG)
मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में एडमिशन मिलता है।
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NEET
लागू होने का इतिहास भी कम घुमावदार नहीं है। 2016
तक पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ऑल
इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (AIPMT)
होता था। राज्यों में अलग से प्री-मेडिकल टेस्ट (PMT)
होता था।
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NEET पहली बार 2003
में हुई थी,
पर उसके अगले साल राज्यों के विरोध की वजह से बंद करनी पड़ी। सुप्रीम
कोर्ट ने 13 अप्रैल 2016
को इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट में नए सेक्शन 10-D
को मंजूरी दी। इससे देशभर के मेडिकल कॉलेजों में अंडरग्रेजुएट और
पोस्टग्रेजुएट कोर्सेस के लिए सिंगल एंट्रेंस एग्जाम का रास्ता खुला।
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तब से देशभर में मेडिकल कोर्सेस में एडमिशन के लिए स्टूडेंट्स को NEET देना पड़ रहा है। शुरुआत में CBSE (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल) ने यह परीक्षा कराई। पर नेशनल टेस्टिंग
एजेंसी (NTA) बनने के बाद 2018
में उसे यह जिम्मेदारी दी गई। 2020
में 15.97
लाख स्टूडेंट्स ने 13
सितंबर 2020 को NEET
में भाग लिया था। इस साल 11
सितंबर को अंडरग्रेजुएट और 12
सितंबर को पोस्टग्रेजुएट कोर्सेस के लिए एंट्रेंस एग्जाम हो रही है।
मेडिकल कॉलेजों के लिए ऑल इंडिया कोटा क्या है?
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राज्यों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए दो तरह के नियम हैं- 1. ऑल इंडिया कोटा और, 2.
स्टेट कोटा। स्टेट कोटे में राज्य के मूल निवासी स्टूडेंट्स को एडमिशन
मिलता था। वहीं,
ऑल इंडिया कोटे में नेशनल लेवल पर मेरिट लिस्ट के आधार पर अन्य राज्यों के
स्टूडेंट्स को भी एडमिशन मिलता है। राज्यों के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में 15% अंडरग्रेजुएट सीटें और 50%
पोस्टग्रेजुएट सीटें ऑल इंडिया कोटे में रहती है। बाकी बची सीटें स्टेट
कोटे में आती है।
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ऑल इंडिया कोटा भी सुप्रीम कोर्ट के 1986
के फैसले से लागू हुआ था। ताकि अगर कोई स्टूडेंट अपने मूल राज्य से बाहर
के अच्छे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेना चाहता है तो उसे ऐसा करने की इजाजत
मिल सके।
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उदाहरण के लिए अगर राजस्थान का मूल निवासी महाराष्ट्र के सरकारी मेडिकल
कॉलेज में एडमिशन चाहता है तो वह ऑल इंडिया कोटे की मेरिट लिस्ट में जगह
बनाकर ऐसा कर सकता है। अगर ऑल इंडिया कोटे में जगह नहीं बना सका तो
स्टूडेंट के पास अपने राज्य के मेडिकल या डेंटल कॉलेज में एडमिशन की उम्मीद
कायम रहती है।
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डीम्ड/सेंट्रल यूनिवर्सिटियों, ESIC
और आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज (AFMC)
में 100%
सीटें ऑल इंडिया कोटे में रहती हैं। यानी ऑल इंडिया कोटे का अलग से
प्रावधान सिर्फ राज्यों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रहता है।
यह रिजर्वेशन पॉलिसी किस तरह लागू होती है?
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2007
तक मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए ऑल इंडिया कोटे में कोई रिजर्वेशन
नहीं होता था। पर 31 जनवरी 2007
को अभय नाथ बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी एवं अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट
ने ऑल इंडिया कोटे में अनुसूचित जाति को 15% और अनुसूचित जनजाति को 7.5%
रिजर्वेशन देने का आदेश दिया था।
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इसके बाद सरकार ने सेंट्रल एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस (रिजर्वेशन इन एडमिशन)
एक्ट 2007
लागू किया। इससे केंद्र सरकार के मेडिकल कॉलेजों- यानी एम्स जैसे
संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) स्टूडेंट्स को 27%
रिजर्वेशन मिलने लगा। राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में ऑल इंडिया कोटे के
बाहर OBC कोटा रहेगा। यानी ऑल इंडिया कोटे में OBC
के लिए रिजर्वेशन नहीं दिया जा रहा था।
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2019 में सरकार ने संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम 2019
पारित किया। इसमें आर्थिक तौर पर कमजोर तबके (EWS)
के लिए 10%
कोटा जोड़ा गया। इसे केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में लागू किया गया पर
राज्यों के संस्थानों में NEET के ऑल इंडिया कोटे में उसे शामिल नहीं किया गया।
सरकार के नए फैसले से किस तरह व्यवस्था बदलेगी?
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सरकार ने 29
जुलाई को तय किया कि एकेडमिक ईयर 2021-22
से मेडिकल कॉलेजों के ऑल इंडिया कोटे में भी OBC
और EWS
के लिए कोटा रहेगा। हेल्थ मिनिस्ट्री का कहना है कि इस फैसले से OBC स्टूडेंट्स को 1,500 MBBS
और 2,500
पोस्टग्रेजुएट सीटों का लाभ मिलेगा। इसी तरह EWS
स्टूडेंट्स को 550 MBBS
और 1,000
पोस्टग्रेजुएट सीटें रिजर्व रहेंगी।
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यह OBC और EWS
दोनों के लिए ही विन-विन सिचुएशन है। ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ OBC एम्प्लॉई'ज वेलफेयर रिपोर्ट कहती है कि 2017 से 2020
के बीच राज्य सरकारों के मेडिकल कॉलेजों में 40,800
सीटें ऑल इंडिया कोटे में गई। यह बताता है कि 10,900
OBC स्टूडेंट्स अपने कोटे से एडमिशन नहीं पा सके।
केंद्र सरकार ने यह फैसला क्यों लिया?
-
मद्रास हाईकोर्ट के फैसले की वजह से। NEET
को लेकर सबसे ज्यादा विरोध दक्षिण भारत से हो रहा था। तमिलनाडु की
सत्ताधारी द्रमुक (DMK)
और उसके सहयोगियों ने मद्रास हाईकोर्ट में ऑल इंडिया कोटे में OBC
को कोटा देने की मांग की थी। इस पर हाईकोर्ट ने 27
जुलाई 2020
को इसके पक्ष में फैसला सुनाया था। पर यह नियम 2021-22 से लागू होना था।
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13 जुलाई 2021 को NEET-2021
नोटिफिकेशन जारी हुआ। इसमें ऑल इंडिया कोटे में OBC
रिजर्वेशन की बात नहीं थी। तब DMK
ने 19
जुलाई को अवमानना याचिका दाखिल की। इस पर मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि ऑल
इंडिया सीटों में OBC
रिजर्वेशन नहीं दिया जाना यह बताता है कि केंद्र सरकार हाईकोर्ट के फैसले
की अवमानना हो रही है।
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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 26
जुलाई को मद्रास हाईकोर्ट में बताया कि राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में ऑल
इंडिया कोटे के तहत OBC
कोटा देने का फैसला जल्द ही हो जाएगा। इस मामले की अगली सुनवाई 3 अगस्त को है।
क्या इस फैसले का NEET पर कोई असर पड़ेगा?
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मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बाद कई याचिकाएं दाखिल हुई हैं। सुप्रीम
कोर्ट में सलोनी कुमारी की याचिका पर फैसला आया नहीं है। NTA की वेबसाइट पर NEET
की इंफॉर्मेशन बुकलेट कहती है कि ऑल इंडिया कोटे में OBC
कोटे का फैसला सुप्रीम कोर्ट में लंबित (सलोनी कुमारी) केस के नतीजे के
अधीन होगा।
-
यानी साफ है कि NTA
पहले ही यह स्पष्ट कर चुकी है कि ऑल इंडिया कोटे में बदलाव हो सकता है। इस
वजह से उसके नोटिफिकेशन को चुनौती देने का शायद ही कोई फायदा हो। इसका मतलब
यह भी है कि NEET की तारीखों पर इस फैसले का कोई असर नही पड़ेगा।
source article : - Dainik Bhaskar
