प्रेस की स्वतन्त्रता ( Freedom of Press )

भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली की आधारशिला है , क्योंकि इस स्वतन्त्रता के द्वारा ही जनता की तार्किक और आलोचनात्मक शक्ति का विकास हो सकता है और जनता की इस शक्ति के विकास से लोकतन्त्रीय सरकार को सुचारु रूप से चलाने में सहायता मिलती है ।
भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में विचारों के प्रचार और प्रसार की स्वतन्त्रता को शामिल है । भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता केवल अपने ही विचारों के प्रसार की स्वतन्त्रता तक सीमित नहीं है , इनमें दूसरों के विचारों के प्रसार एवं प्रकाशन की स्वतन्त्रता भी शामिल है , जो प्रेस की स्वतन्त्रता द्वारा ही सम्भव है ( रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य , AIR 1950 SC 124 ) ।
सकाल पेपर्स लिमिटेड बनाम भारत संघ ( AIR 1962 SC 305 ) के मामले में भी पर उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में प्रेस की स्वतन्त्रता भी शामिल है , क्योंकि समाचार - पत्र विचार की अभिव्यक्ति करने के एक माध्यम - मात्र है ।
" प्रेस की स्वतन्त्रता राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक है । जिस समाज में मनुष्य को अपने विचारों को एक - दूसरे तक पहुँचाने की स्वतन्त्रता नहीं है वहाँ अन्य स्वतन्त्रताएँ भी सुरक्षित नहीं रह सकती हैं । वस्तुतः जहाँ वाक्स्वातन्त्र्य है वहीं स्वतन्त्र समाज का प्रारम्भ होता है और स्वतन्त्रता को बनाये रखने के सभी साधन मौजूद रहते हैं । इसलिये वाक् स्वातन्त्र्य को स्वतन्त्रताओं में एक अनोखा स्थान प्राप्त है । प्रजाजन्त्र केवल विधायिका के सचेत देखभाल में ही नहीं वरन लोकमत की देखभाल और मार्गदर्शन के अन्तर्गत भी फलता - फूलता है । प्रेस की ही यह सबसे बड़ी विशिष्टता है कि उसके ही माध्यम से लोकमत स्पष्ट होता है ।
प्रेस की स्वतन्त्रता केवल दैनिक समाचारपत्रों और साप्ताहिक पत्रों तक ही सीमित नहीं है , इसके अन्तर्गत उस प्रकार के प्रकाशन सम्मिलित हैं , जिनके द्वारा व्यक्ति अपने विचारों को ये , एक दूसरे तक पहुँचा सकता है , जैसे पत्रिका , पत्रक , विज्ञापन पटल आदि ।
प्रभुदत्त बनाम भारत संघ ( AIR 1982 SC 61 ) के मामले में अभिनिर्धारित किया गया । कि प्रेस की स्वतन्त्रता में संसूचनाओं तथा समाचारों को जानने का अधिकार भी शामिल है ।
प्रेस का पूर्व अवरोध ( Pre - censorship of Press ) - न्यायिक निर्णयों ने प्रेस की स्वतन्त्रता को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में शामिल होना मान्य किया है , किन्तु था प्रेस की स्वतन्त्रता का अर्थ है सरकार की पूर्व अनुमति के बिना अपने विचारों को प्रकाशित ३ करना । अस्तु यदि कोई कानून ऐसे प्रकाशन पर पूर्व - अवरोध आरोपित करता है , तो वह इस स्वतन्त्रता का उल्लंघन करता है ।
ब्रजभूषण बनाम दिल्ली राज्य ( AIR 1950 SC 129 ) के मामले में दिल्ली के चीफ 10 कमिश्नर ने ईस्ट पंजाब पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट , 1949 की धारा 7 के अन्तर्गत दिल्ली के एक साप्ताहिक समाचार - पत्र पर यह सेन्सर लगाया कि वह उन सभी प्रकार के साम्प्रदायिक मामलों या पाकिस्तान से सम्बन्धित समाचारों आदि , को जो सरकारी न्यूज एजेन्सियों द्वारा प्राप्त नहीं किये गये हैं , प्रकाशित करने के पहले सरकार की पूर्व अनुमति प्राप्त करे । उच्चतम न्यायालय ने कहा कि समाचार - पत्र पर सेन्सर लगाना प्रेस की स्वतन्त्रता पर अनुचित प्रतिबन्ध 06 है , इसलिये सरकार का आदेश असंवैधानिक है ।
इण्डियन एक्सप्रेस न्यज पेपर ( मम्बई ) प्रा० लि . बनाम भारत संघ , [ ( 1985 ) SC 541 ] के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी समाचार पत्र को तत्कालीन महत्व के विषय पर अपने विचार प्रकाशित करने से रोकना भाषण और अभिव्यक्ति की । स्वतन्त्रता पर एक गम्भीर अतिक्रमण है ।
बेनेट कोलमेन एण्ड कं० लि . बनाम भारत संघ , [ AIR 1973 SC 106 ] मामले में सरकार की सन् 1972 - 73 की अखबारी कागज नीति और अखबारी कागज नियन्त्रण आदेश 1962 की वैधता को चनौती दिए जाने पर , जब सरकार ने अखबारी कागज की कमी के आधार पर और इस आधार पर कि बड़े - बड़े दैनिक अखबार विज्ञापनों के लिए अखबार के बहुत अधिक स्थान का उपयोग करते हैं , यदि वे अपने विज्ञापन के स्थान में कुछ समायोजन कर लें , तो अखबार के पृष्ठों में की गई कटौती से उन्हें हानि नहीं होगी , पृष्ठों का स्तर घटाने की अपनी नीति को न्यायोचित ठहराया , तब उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अखबारों के लिये आय का मुख्य स्रोत विज्ञापन है । पृष्ठों को घटाने के कारण उन्हें विज्ञापन बढ़ाना पड़ेगा जिससे समाचारों को कम स्थान मिलेगा और उनका परिचलन घटेगा क्योंकि पाठकों को कम समाचार मिलेंगे । इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रतिबन्धित होती है । और अखबारों को आर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है । इसलिये न्यायालय ने सरकार की । अखबारी कागज नीति को असंवैधानिक घोषित कर दिया । हमदर्द दवाखाना बनाम भारत संघ ( AIR 960 SC 354 ) के मामले में सरकार ने ' औषधि और जादू उपचार ( आपत्तिजनक विज्ञापन ) अधिनियम ' पारित किया , जिसका उद्देश्य औषधियों के विज्ञापन को नियन्त्रित करना और बीमारियों को अच्छा करने के लिए जादू के गुण वाली औषधियों के विज्ञापन को निषिद्ध करना था । उच्चतम न्यायालय ने इस अधिनियम को वैध घोषित करते हुए कहा कि यद्यपि विज्ञापन अभिव्यक्ति का ही एक माध्यम है , फिर भी प्रत्येक विज्ञापन वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से सम्बन्धित नहीं होता है । प्रस्तुत मामले में विज्ञापन विचारों के प्रसार से नहीं , बल्कि विशुद्ध रूप से व्यापार एवं वाणिज्य से सम्बन्धित है । निषिद्ध औषधियों का विज्ञापन अनु० 19 ( 1 ) ( क ) के क्षेत्र से बाहर है और ऐसे विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं ।
एम० आई०सी० बनाम मनुभाई [ ( 1992 ) 3 SCC 63 ] के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि प्रेस की स्वतन्त्रता पर निर्बन्धन उन्हीं आधारों पर लगाए जा सकते हैं , जो कि अनु० 19 में उल्लिखित हैं । अन्य किसी आधार पर प्रेस की स्वतन्त्रता पर निर्बन्धन नहीं लगाये जा सकते हैं ।
लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [ ( 2006 ) 5 एस० सी० सी० 475 ] में यह अवधारित किया गया है कि नागरिकों को अनुच्छेद 19 ( 1 ) ( a ) के अन्तर्गत अन्तर्जातीय विवाह का अधिकार प्राप्त है ।
डाइरेक्टर जनरल आफ दूरदर्शन बनाम आनन्द पटवर्धन [ ( 2006 ) 8 एस० सी० । सी० 433 ] में उच्चतम न्यायालय ने यह अवधारित किया है कि प्रत्येक व्यक्ति को अनुच्छेद 19 ( 1 ) ( a ) के अन्तर्गत अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है जिसके अन्तर्गत हर प्रकार की सूचना और विचार सीमा के बन्धन से परे मौखिक , लिखित या प्रिन्ट के रूप में । प्राप्त करने एवं प्रदान करने की स्वतंत्रता है ।
प्रिन्टर्स मैसूर लि . बनाम कामर्शियल टैक्स अधिकारी | ( 1994 ) 2Scc 4341 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि प्रेस की स्वतन्त्रता अन्य स्वतन्त्रताओं । से उच्च स्तर की है । अत : उस पर कर लगाने वाले कानून की वैधता की जाँच की कसौटी अन्य से पृथक होनी चाहिए ।